उनके कहने पे हम, शोलों में भी रह लेते हैं।
बात फूलों की क्या, काँटों को भी सह लेते हैं।
उसने देखी कहाँ है अभी तिश्नगी मेरी,
उसकी खातिर तो हम, मर के भी जी लेते हैं।
काश देखें कभी वो फटा सा दामन मेरा,
क्योंकि हम जिगर तो उस वक़्त ही सी लेते हैं।
उनको आता नहीं है मखमली चादर पे भी चैन,
हम तो तपती हुई धरती पे भी सो लेते हैं।
गर एक बार वो घूँघट जो खोल दे अपना,
सरापा इश्क में मदहोश से हो लेते हैं।
बात फूलों की क्या, काँटों को भी सह लेते हैं।
उसने देखी कहाँ है अभी तिश्नगी मेरी,
उसकी खातिर तो हम, मर के भी जी लेते हैं।
काश देखें कभी वो फटा सा दामन मेरा,
क्योंकि हम जिगर तो उस वक़्त ही सी लेते हैं।
उनको आता नहीं है मखमली चादर पे भी चैन,
हम तो तपती हुई धरती पे भी सो लेते हैं।
गर एक बार वो घूँघट जो खोल दे अपना,
सरापा इश्क में मदहोश से हो लेते हैं।
- शाहनवाज़ सिद्दीकी 'साहिल'
Keywords: Gazal, Ghazal, ग़ज़ल, hindi, poem
उनको आता नहीं मखमली बिस्तर पे भी चैन,
ReplyDeleteहम तो तपती हुई धरती पे भी सो लेते हैं।
गज़ब की तस्वीर खीची आप ने इस ग़ज़ल में बहुत खूब !
Nice Main sajid se sehmat hu
ReplyDeleteदिल खुश हो गया दोस्त !!
ReplyDeleteएक बात बताइए : क्या देखा की ये ग़ज़ल लिखी ????
ReplyDeleteश्ार्बती मेरी जान सलाम
ReplyDeleteथी जब वह साथ समझती थी हम उस में जीते हैं
मर-मर ही के सही देख लो बिन उसके हम जी लेते हैं
आपकी बेहतरीन ग़ज़ल पर आपको मुबारकबाद शाहनवाज़ भाई
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल...
ReplyDeleteसुन्दर शब्दों के साथ बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसुन्दर गजल।
ReplyDeleteखूबसूरत ग़ज़ल...
ReplyDeleteउसने देखी कहाँ अभी तिश्नगी मेरी,
ReplyDeleteउसकी खातिर तो हम, मर के भी जी लेते हैं।
बहुत सुन्दर एहसास ..
सुन्दर गज़ल
काश देखें कभी वो फटा सा दामन मेरा,
ReplyDeleteक्योंकि हम जिगर तो उस वक़्त ही सी लेते हैं।
Lajawab!
वाह...वाह...वाह...बहुत ही सुन्दर...
ReplyDeleteहर शेर मनभावन और सुन्दर !!!
वाह...वाह...वाह...बहुत ही सुन्दर...
ReplyDeleteहर शेर मन सुन्दर !!!
बहुत अच्छी रचना है सुन्दर भाव सजाये हैं आपने इसमें लेकिन इसे ग़ज़ल नहीं कहा जा सकता क्यूँ के ग़ज़ल के कुछ नियम कायदे होते हैं जो इस में पूरे नहीं किये गए...आप लिखते रहें एक दिन ग़ज़ल कहना भी सीख जायेंगे...
ReplyDeleteनीरज
वो एक बार गर घूँघट जो खोल दे अपना,
ReplyDeleteसरापा इश्क में मदहोश से हो लेते हैं।
Kanhi ye unke kahne par to nahi likha hai apne......
काश देखें कभी वो फटा सा दामन मेरा,
ReplyDeleteक्योंकि हम जिगर तो उस वक़्त ही सी लेते हैं।
मनभावन और सुन्दर !!!
सुन्दर शब्दों के साथ बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत खूब गज़ल कही!!!
ReplyDelete"काश देखें कभी वो फटा सा दामन मेरा,
ReplyDeleteक्योंकि हम जिगर तो उस वक़्त ही सी लेते हैं।"
kya baat hai ji...
kunwar ji,