उनके कहने पे हम

Posted on
  • by
  • Shah Nawaz
  • in
  • Labels: ,

  • उनके कहने पे हम, शोलों में भी रह लेते हैं।
    बात फूलों की क्या, काँटों को भी सह लेते हैं।

    उसने देखी कहाँ है अभी तिश्नगी मेरी,
    उसकी खातिर तो हम, मर के भी जी लेते हैं।

    काश देखें कभी वो फटा सा दामन मेरा,
    क्योंकि हम जिगर तो उस वक़्त ही सी लेते हैं।

    उनको आता नहीं है मखमली चादर पे भी चैन,
    हम तो तपती हुई धरती पे भी सो लेते हैं।

    गर एक बार वो घूँघट जो खोल दे अपना,
    सरापा इश्क में मदहोश से हो लेते हैं।

    - शाहनवाज़ सिद्दीकी 'साहिल'




    Keywords: Gazal, Ghazal, ग़ज़ल, hindi, poem

    20 comments:

    1. उनको आता नहीं मखमली बिस्तर पे भी चैन,
      हम तो तपती हुई धरती पे भी सो लेते हैं।

      गज़ब की तस्वीर खीची आप ने इस ग़ज़ल में बहुत खूब !

      ReplyDelete
    2. एक बात बताइए : क्या देखा की ये ग़ज़ल लिखी ????

      ReplyDelete
    3. श्‍ार्बती मेरी जान सलाम

      थी जब वह साथ समझती थी हम उस में जीते हैं
      मर-मर ही के सही देख लो बिन उसके हम जी लेते हैं

      ReplyDelete
    4. आपकी बेहतरीन ग़ज़ल पर आपको मुबारकबाद शाहनवाज़ भाई

      ReplyDelete
    5. सुन्‍दर शब्‍दों के साथ बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

      ReplyDelete
    6. उसने देखी कहाँ अभी तिश्नगी मेरी,
      उसकी खातिर तो हम, मर के भी जी लेते हैं।
      बहुत सुन्दर एहसास ..
      सुन्दर गज़ल

      ReplyDelete
    7. काश देखें कभी वो फटा सा दामन मेरा,
      क्योंकि हम जिगर तो उस वक़्त ही सी लेते हैं।
      Lajawab!

      ReplyDelete
    8. वाह...वाह...वाह...बहुत ही सुन्दर...
      हर शेर मनभावन और सुन्दर !!!

      ReplyDelete
    9. वाह...वाह...वाह...बहुत ही सुन्दर...
      हर शेर मन सुन्दर !!!

      ReplyDelete
    10. बहुत अच्छी रचना है सुन्दर भाव सजाये हैं आपने इसमें लेकिन इसे ग़ज़ल नहीं कहा जा सकता क्यूँ के ग़ज़ल के कुछ नियम कायदे होते हैं जो इस में पूरे नहीं किये गए...आप लिखते रहें एक दिन ग़ज़ल कहना भी सीख जायेंगे...
      नीरज

      ReplyDelete
    11. वो एक बार गर घूँघट जो खोल दे अपना,
      सरापा इश्क में मदहोश से हो लेते हैं।


      Kanhi ye unke kahne par to nahi likha hai apne......

      ReplyDelete
    12. काश देखें कभी वो फटा सा दामन मेरा,
      क्योंकि हम जिगर तो उस वक़्त ही सी लेते हैं।

      मनभावन और सुन्दर !!!

      ReplyDelete
    13. सुन्‍दर शब्‍दों के साथ बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

      ReplyDelete
    14. बहुत खूब गज़ल कही!!!

      ReplyDelete
    15. "काश देखें कभी वो फटा सा दामन मेरा,
      क्योंकि हम जिगर तो उस वक़्त ही सी लेते हैं।"

      kya baat hai ji...

      kunwar ji,

      ReplyDelete

     
    Copyright (c) 2010. प्रेमरस All Rights Reserved.