समाचार पत्र "हरिभूमि" के आज के संस्करण में मेरा व्यंग्य - "अपने पहले लेख का इंतज़ार".
(व्यंग्य की कतरन पर
चटका लगा कर पढ़ें)
आज सुबह सुबह लिखनें के लिए बैठा, फिर सोचा कि क्या लिखुं? बड़े-बड़े लिक्खाड़ रोज़ कुछ ना कुछ लिखते हैं, उनके पास लिखने के लिए रोज़ नया विषय होता है। आज सोच कर बैठा हूँ कि कुछ ना कुछ तो लिखुंगा, लेकिन लिखने के लिए लिखना भी तो आना चाहिए! कल ही तो बॉस लाल-पीला हो रहा था, "लेख का 'ल' तो पता नहीं, चले है लिखने"। लेकिन हमने भी अपने-आप से वादा किया है कि आज लिख कर ही छो़ड़ेंगे। लिखने की अपनी ही सार्थकता है, सुना है लिखाई की धार तलवार से भी तेज होती़ है। मतलब लिखने से पहले यह भी सोचना पड़ेगा की कहीं यह किसी के लग ना जाए, बेकार में बैठे-बिठाए कट जाएगा? लेकिन अगर यही सोच कर बैठे रहे तो लिखेंगे क्या? इसलिए सोचा यह सब सोचने की जगह लिखना शुरू करते हैं। जिसको कटने का डर होगा वह हमारे लेख से अपने आप ही बचेगा। मैं एक लेखक हूँ, लेखन मेरा कर्म ही नहीं धर्म भी है, इसलिए मुझे अपना लेखन धर्म निभाना चाहिए। फिर लेखन तो समाजसेवा भी है और मेवा भी तो सेवा में ही मिलती है। अब जब मेंवा के लिए लिखना है तो किसी के नुकसान के बारे में क्या सोचना? लिखते समय मुझे केवल यह सोचना चाहिए कि मैं सही बात लिखूं। और यह तो हो ही नहीं सकता कि मैं, और गलत लिखूँ। वह तो लोग मुझसे जलते है और इसीलिए मुझ पर यह इल्ज़ाम लगाते हैं। अपने लेखन के समर्थन में मेंरे पास पूरे तर्क होते हैं। अब तर्क की बात तो यह है कि लेखन हमारा कार्य है, इसलिए बात अगर तर्कसंगत ना भी हो तो तर्क गढ़ना हमें आना चाहिए। वैसे मैं तो तर्क लेखन में भी निपुण हूँ, इसलिए मुझे घबराने की जगह अपना कर्म निभाना चाहिए। वैसे भी आज मुझे कुछ लिखना है और वह भी ऐसा लिखना है कि सब कहें कि "क्या लिखा है", हो सकता है कि कुछ कहें कि "यह क्या लिखा है"?
लेखन के बारे में सोचते-सोचते समय निकलता जा रहा है। अब जब मैं लिखने के लिए बैठा हूँ तो मुझे कुछ ना कुछ तो लिखना ही चाहिए। वैसे भी अगर लिखुंगा ही नहीं तो छपेगा क्या? और अगर कुछ छपेगा नहीं तो सेलैरी कैसे मिलेगी? फिर बॉस के साथ-साथ श्रीमति जी का गुस्सा! और बच्चे क्यों सोचेंगे? अगर उन्होने सवाल कर दिया कि बापू कुछ लिखा क्या? तो क्या जवाब दूंगा? समय व्यतीत होने के साथ-साथ मन बहुत विचलित होता जा रहा है। आज कई दिन हो गए हैं, रोज़ाना लिखने के लिए बैठता हूँ, लेकिन लिख ही नहीं पाता हूँ। आखिर लिखने के लिए कुछ सोच तो होनी चाहिए? वैसे लोग तो बिना सोच के भी लिख देते हैं. मित्रों दुआ करो की आज मैं कुछ ना कुछ लिख ही दूं। आप तब तक इंतज़ार करो, मैं कुछ ना कुछ लिख कर दिखाता हूँ। वैसे इंतज़ार तो मेरा बॉस भी कर रहा है, मेरे पहले लेख का!
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
लेखन के बारे में सोचते-सोचते समय निकलता जा रहा है। अब जब मैं लिखने के लिए बैठा हूँ तो मुझे कुछ ना कुछ तो लिखना ही चाहिए। वैसे भी अगर लिखुंगा ही नहीं तो छपेगा क्या? और अगर कुछ छपेगा नहीं तो सेलैरी कैसे मिलेगी? फिर बॉस के साथ-साथ श्रीमति जी का गुस्सा! और बच्चे क्यों सोचेंगे? अगर उन्होने सवाल कर दिया कि बापू कुछ लिखा क्या? तो क्या जवाब दूंगा? समय व्यतीत होने के साथ-साथ मन बहुत विचलित होता जा रहा है। आज कई दिन हो गए हैं, रोज़ाना लिखने के लिए बैठता हूँ, लेकिन लिख ही नहीं पाता हूँ। आखिर लिखने के लिए कुछ सोच तो होनी चाहिए? वैसे लोग तो बिना सोच के भी लिख देते हैं. मित्रों दुआ करो की आज मैं कुछ ना कुछ लिख ही दूं। आप तब तक इंतज़ार करो, मैं कुछ ना कुछ लिख कर दिखाता हूँ। वैसे इंतज़ार तो मेरा बॉस भी कर रहा है, मेरे पहले लेख का!
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
"हरिभूमि" का प्रष्ट - 4
Keywords:
Haribhumi, व्यंग, व्यंग्य, हरिभूमि
बहुत-बहुत बधाई हो शाहनवाज जी ,अच्छा और सार्थक सोच है आपका |
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई हो शाहनवाज जी ,अच्छा और सार्थक सोच है आपका |
ReplyDeleteआपको बहुत बधाई हो भाईजान
ReplyDeleteआज मेरी ये अंतिम टिपण्णी हैं ब्लोग्वानी पर .
कुछ निजी कारणों से मुझे ब्रेक लेना पड़ रहा हैं .
लेकिन पता नही ये ब्रेक कितना लंबा होगा .
और आशा करता हूँ की आप मेरा आज अंतिम लेख जरूर पढोगे .
अलविदा .
संजीव राणा
हिन्दुस्तानी
बढिया मेरी जान लेकिन चटका हमने हरिभूमी पर नहीं कहीं और लगाया है समझ गये होंगे जनाब
ReplyDelete@ SANJEEV RANA
ReplyDeleteसंजीव जी इसे अंतिम टिपण्णी क्यों कहते हो मित्र? आखिर ऐसा क्या हुआ? वैसे मैं तो हमेशा ही आपका लेख पढता हूँ, आज भी पढूंगा. परन्तु आशा करता हूँ, कि आप ऐसे ही इस ब्लॉग जगत का हिस्सा बने रहें. अगर कोई परेशानी हो तो उसे अवश्य साझा करें.
Wah ji kya baat hai, bahut mazedar. Badhai ho.
ReplyDeleteMubarak ho Shah ji. Ati sundar! Mazedar hai ji.
ReplyDeleteएक बार लिखित मुबारकबाद भी कबूल कीजिएगा शाहनवाज जी। इसे मैंने अपने एक ब्लॉग पर भी स्थान दिया है, अवश्य खोजिएगा।
ReplyDeleteजी अविनाश जी, मैंने पढ़ा आपके ब्लॉग पर, बहुत-बहुत धन्यवाद! बस यही कामना है की ऐसे ही मेरा मार्गदर्शन करते रहिये.
ReplyDelete"क्या लिखा है"
ReplyDeleteहो सकता है कि कुछ कहें कि "यह क्या लिखा है"?
"मित्रों दुआ करो की आज मैं कुछ ना कुछ लिख ही दूं। आप तब तक इंतज़ार करो, मैं कुछ ना कुछ लिख कर दिखाता हूँ। वैसे इंतज़ार तो मेरा बॉस भी कर रहा है, मेरे पहले लेख का!"
ReplyDeleteहमारी दुआ है कि आप अच्छा लिखें और खूब लिखे!
Very Nice Shahnawaz!
ReplyDeleteBahut Badhiya. :)
ReplyDeletevery nice
ReplyDeleteवाह भाई वाह......कैब मैं लिखा हुआ लेख प्रकाशित भी हो गया. चलो हमारे साथ रहेने का कुछ तो फायेदा हुआ.
ReplyDeleteमुह्बारक हो आपको.....
बहुत अच्छा शाहनवाज़ भाई आप अखबारो मे क्या हर जगह छाए रहते है
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई और मुबारकबाद शाहनवाज जी । भविष्य के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं । लिखते रहें ।
ReplyDeleteलेख है ही ऐसा..कौन इसे छापना नहीं चाहेगा...बधाई हो जी...
ReplyDeleteकुंवर जी,