आज समाज में धीरे-धीरे संवेदनशीलता का अंत होता जा रहा है. लोग सड़क हादसों में पड़े-पड़े दम तोड़ देते हैं और कोई हाथ मदद के लिए नहीं उठता है. अक्सर देखने में आया है कि गरीब लोग तो फिर भी मदद करने के लिए आ जाते हैं, परन्तु अमीर तथा बड़े ओहदों पर बैठे लोग स्वयं अपनी मोटर गाड़ियों से दुर्घटना करने की बावजूद लोगो को तड़पते हुए छोड़ देते हैं. और इसकी ताज़ा मिसाल मुझे स्वयं देखने को मिली. एक इंसान बैंक से पैसे निकाल कर अपने घर की तरफ जा रहा था, परन्तु रास्ते में एक बहुत ही महत्वपूर्ण पद पर बैठी हुई एक महिला न्यायधीश ने कानून और मर्यादा को तार-तार करते हुए उसे मौत के मुंह में धकेल दिया. किसी आम इंसान से तो फिर भी ऐसी उम्मीद की जा सकती है, कि वह कानून का पालन ना करे, परन्तु संविधान की रक्षा करने वाले तथा लोगो को कानून का पाठ पढ़ने वाले स्वयं ही कानून का मजाक बनाकर किसी को मौत के मुंह में धकेल दें तो इसे आप क्या कहेंगे?
बात 8 अप्रैल, दोपहर 4 बजे के आस-पास, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश की है जहाँ दिल्ली से तबादला हो कर आई एक न्यायाधीश साहिबा की सेंट्रो कार से बैंक से पैसे निकाल कर आ रहे इकराम गनी बुरी तरह घायल हो गए. इसे माननीय न्यायधीश की लापरवाही कहे या फिर अपने रुतबे के दंभ में कानून को ठेंगा दिखने की बड़े लोगो की फितरत, जिसके चलते न्यायधीश साहिबा जिसका नाम शशी वालिया बताया जा रहा है, जिसने बिना यह देखे की कोई मोटर साईकिल सवार भी बराबर से गुज़र रहा है अपनी सेंट्रो कार को सड़क के बीच में रोका और कार का दरवाज़ा खोल दिया. जिससे टकराकर इकराम गनी बीच सड़क में गिरकर बुरी तरह घायल हो गए. उसके एक पैर की हड्डी बुरी तरह टूट गई और सर की हड्डी मस्तिष्क में जा घुसी. इतना होने पर जब लोगो की भीड़ इकट्ठी हो गई और कानून की तथाकथित रक्षक को लगा की बात बिगड़ सकती है, तो आनन-फानन में उसे पास के सरकारी अस्पताल में भरती करा कर चलती बनी. हालांकी मोटर साईकिल सवार की हालत इतनी गंभीर थी और उसे जल्द से जल्द मस्तिष्क के ऑपरेशन की आवश्यकता थी. परन्तु उस इन्साफ की देवी ने उसके बाद मुड कर भी नहीं देखा की उसके कानून को ठेंगा दिखाने के कारण जो इंसान मौत और ज़िन्दगी की जंग लड़ रहा है उसकी हालत कैसी है?
जब दुर्घटना की खबर मिलने पर इकराम के घर वाले अस्पताल पहुंचे तो देखा की वह बुरी तरह घायल है. जब चिकित्सकों ने बताया की बचने की उम्मीद बहुत क्षीण है और अस्पताल में उसके इलाज के साधन ही नहीं हैं, तब इकराम के घरवालों ने चिकित्सकों से गुहार लगाई की उसको डिस्चार्ज कर दें ताकि वह पास के ही निजी अस्पताल "साईं अस्पताल" में ले जा सकें तो डिस्चार्ज करने में ही अस्पताल के लापरवाह कर्मचारियों ने डेड़ घंटा लगा दिया.
किसी तरह घर वाले इकराम को लेकर साईं अस्पताल पहुंचे तो रास्ते में पता चला की उसकी जेब में बैंक की रसीद तो है, लेकिन पैसे और बटुआ गायब है. कितने क्रूर होते हैं वह लोग जो ऐसी हालत में भी ऐसी घिनौनी और अमानुषी हरकत करते हैं.
खबर है की आज चार दिन के बाद उसे होश नहीं आया है, और जब मुरादाबाद के सबसे मशहूर अस्पताल के चिकत्सकों ने अपने हाथ खड़े कर दिए तो उसे दिल्ली लाया गया है.
माननीय न्यायधीश साहिबा ने यह भी देखने की ज़रूरत नहीं समझी की रोज़ अपनी रोटी का जुगाड़ करने वाले उक्त मोटर साईकिल सवार के घर वाले आखिर कैसे इतने महंगे इलाज के लिए पैसे का जुगाड़ कर रहे हैं?
वही चश्मदीदो के मुताबिक न्यायधीश साहिबा ने हादसे और अस्पताल के बीच में ही फ़ोन पर अपने ताल्लुक वालो को कॉल करके हादसे की जानकारी और स्थिति को सँभालने की ज़िम्मेदारी दे दी थी और शायद इसी के चलते मुरादाबाद की पुलिस ने अभी तक कोई भी खास कदम नहीं उठाया है. शायद वह मामले को रफा-दफा करने की फ़िराक में है.
वैसे भी इस देश में गरीबों की सुनता कौन है? कितने ही भूखे-नंगे, सड़क पर सोने वाले गरीब लोग रात को शराब पी कर गाडी चलाने वाले रईस जादो की कार की रफ़्तार नमक हवस का शिकार हो जाते हैं और लोग यूँ ही मुंह देखते रह जाते हैं.
क्या कभी इस देश में गरीबों की सुनवाई नहीं होगी?
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
Keywords:
Accident, Government, Ikram Ghani, News, संवेदनहीनता
Shah ji, insaaf dilane ke liye mai aapke sath hu. Agar aap kahoge to mai aapke saath Muradabad bhi chalne ke liye tayyar hu. Aap bataiye vah Delhi mei kehan admit hai?
ReplyDeleteयह समाचार सुन कर दिल भर आया है. अधिकतर मामलों में महिलाऐं संवेदनशील होती है, परन्तु ऊपर लिखे आपके लेख के अनुसार तो एक महिला खुद इतनी संवेदनहीन ho गई की मुझे यकीन करना भी मुश्किल लग रहा है.
ReplyDeleteइकराम जी क्या दिल्ली के किसी अस्पताल में भर्ती हैं? अगर है तो बताइए, मैं स्वयं उनकी मदद करने के लिए तैयार हूँ.
ReplyDeleteरश्मि जी एवं संजीव जी, यह तो आज के समाज की एक झलक भर है. हम आए दिन कितने ही ऐसे समाचार पढ़ते रहते हैं, परन्तु क्या हमने आजतक कोशिश की है कि हम स्वयं गाडी चलाते हुए नियमों का सही सही पालन करें. मेरे विचार से तो कोशिश अपने आप से ही शुरू करनी होगी.
ReplyDeleteवैसे इकराम गनी दिल्ली के ही "बतरा अस्पताल" में भरती हैं. मैं स्वयं भी उनसे मिलकर आया हूँ. अभी तक वह बेहोश हैं और उनके मस्तिष्क ने काम करना शुरू नहीं किया है.
ReplyDeleteBahut hi dukh bhari khabar hai. Ham tab hi dukh ka ehsas karte hein jabki durghatna hamare khud ke saath ho. Kaash ham dusron ke dukh ko bhi dukh samjhe. Agar aisa ho jae to pareshaani apne-aap hi khatm ho jaegi.
ReplyDeleteAllah unko jaldi se Sehat aur Tandrusti de
ReplyDeleteaur sath hi sath unko insaaf mile. Ameen!
Main bhi insaf ki ladai mein aapke sath hu.
'इस देश में गरीबों की सुनता कौन है?' भाई आपका यह पोस्ट बनाना सुनना ही तो है अल्लाह करे इस पोस्ट के जरिये इकराम साहब की मदद हो जाये और उन्हें इन्साफ मिलने का बहाना भी बन जाये,
ReplyDeleteजो काम आपने कर दिखाया शायद हमारे देश का कोई अखबार यह काम न कर सकेगा
आपके इस सन्देश से संवेदनहीन लोगो के मन में संवेदना जागे,यह आशा करता हूँ,और इकराम भाई सवस्थ हो जाये एसी कामना है ।
ReplyDeleteAapne jis mudde ko uthane ki koshish ki hai, vah vakai bahut zaruri mudda hai. Ishwar se prarthna hai ki Ikram bhai jaldi theek ho jaen.
ReplyDeleteShah ji, aapke prayas ki ek baar fir sarahna karta hu. Hindi Comunity ke diye link se yeh lekh padha tha. Mai zaroor koshish karunga ki Ikram ji ko Batra hospital jakar milu. Dhanyawad
ReplyDeleteaapki nimn baat se mai puri tarah sehmat hu.
ReplyDeleteवैसे भी इस देश में गरीबों की सुनता कौन है? कितने ही भूखे-नंगे, सड़क पर सोने वाले गरीब लोग रात को शराब पी कर गाडी चलाने वाले रईस जादो की कार की रफ़्तार नमक हवस का शिकार हो जाते हैं और लोग यूँ ही मुंह देखते रह जाते हैं.
क्या कभी इस देश में गरीबों की सुनवाई नहीं होगी?
SO SAD
ReplyDeleteशाह नवाज जी,
ReplyDeleteआप एक संवेदनशील, मानवीय गुणों से भरे सुलझे व्यक्ति हैं. आपका प्रोफाइल, http://www.blogger.com/profile/01132035956789850464
आपका चरित्र बताता है. अच्छा लगता है आपको पढना, पहले भी आपको आपके ब्लॉग पर कमेन्ट किया है.
दुःख की बात सिर्फ इतनी है की ब्लॉगजगत के कुछ घटिया पोस्टों(ब्लॉग नहीं पोस्ट) पर आप समर्थन और व्यर्थ के तर्क-वितर्क करते दिखाई देते हैं. आपका इमेल प्रोफाइल पर नहीं होने के कारण यहं लिख रहा हूँ.
राष्ट्र हित और मानवीय सरोकारों से जुड़े मुद्दे पर कलम चलाते रहिये. शुभकामनाएं.
- सुलभ
@ सुलभ § सतरंगी
ReplyDeleteसुलभ जी आपका बहुत धन्यवाद, कि आपने बारे मैं विचार किया. कोई शुभचिंतक ही ऐसी सलाह दे सकता है. परन्तु आप परेशान मत होइए, मैं हमेशा उन्ही लेखो का समर्थन करता हूँ, जो मुझे पसंद-नापसंद आते हैं. रही बात तर्क-वितर्क की, तो अगर आपको किसी बात की जानकारी है, वही अगर कोई उक्त बात पर प्रश्न करे या उसको गलत तरीके से अथवा उसकी जगह कोई झूट बात फैला कर लोगो को भ्रमित करने की कोशिश करे, तो आपका फ़र्ज़ बनता है कि सही जानकारी को लोगो को बताया जाए ताकि झूट और मिथ्या भ्रम समाप्त हो.
आपने आपना समझकर मुझे लिखा, इसके लिए धन्यवाद. अपने लेखो पर हमेशा आपकी प्रतिकिर्याओं का मुन्तजिर रहूँगा.
धन्यवाद!
Assalamu alaikum shahnawaz bhai...
ReplyDeleteMain aap ko pehle sirf islam ka achcha janne wala samjhta tha lekin aap to achche vicharak achche lekhak aur achche kavi bhi hain....
Main ne aap ki kavita "nani ka aangan" para mujhe lagta hai koi bhi nahin hoga jiss ko yeh kavita parne ke baad apna bachpan yaad nahin aaya hoga......Shukriya allah hafiz..
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