विचारों में चाहे विरोधाभास हो, आस्था में चाहे विभिन्नताएं हो परन्तु मनुष्य को ऐसी वाणी बोलनी चाहिए कि बात के महत्त्व का पता चल सके।
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करे, आपहुं सीतल होय॥
किसी ने सही कहा है कि अहम् को छोड़ कर मधुरता से सुवचन बोलें जाएँ तो जीवन का सच्चा सुख मिलता है। कभी अंहकार में तो कभी क्रोध और आवेश में कटु वाणी बोल कर हम अपनी वाणी को तो दूषित करते ही हैं, सामने वाले को कष्ट पहुंचाकर अपने लिए पाप भी बटोरते हैं, जो कि हमें शक्तिहीन ही बनाते हैं।
किसी भी क्षेत्र में सफलता पाने के लिए व्यक्ति के व्यक्तित्व की निर्णायक भूमिका होती है, व्यक्तित्व विकास के लिए भाषा का महत्त्व तो है ही, परन्तु इसके साथ-साथ वाणी की मधुरता भी उतनी ही आवश्यक है। यह वाणी ही हैं जिससे किसी भी मनुष्य के स्वाभाव का अंदाज़ा होता है। चेहरे से अक्सर जो लोग सौम्य अथवा आक्रामक दिखाई देते हैं, असल ज़िन्दगी में उनका स्वभाव कुछ और ही होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि बातचीत के लहज़े से ही व्यक्तित्व का सही अंदाजा लगाया जा सकता है।
ईश्वर ने हमें धरती पर प्रेम फ़ैलाने के लिए भेजा है और यही हर धर्म का सन्देश हैं। प्रेम की तो अजीब ही लीला है, प्रभु के अनुसार तो स्नेह बाँटने से प्रेम बढ़ता है और इससे स्वयं प्रभु खुश होते हैं। कुरआन के अनुसार जब प्रभु किसी से खुश होते हैं तो अपने फरिश्तों से कहते हैं कि मैं उक्त मनुष्य से प्रेम करता हूँ, तुम भी उससे प्रेम करों और पुरे ब्रह्माण्ड में हर जीव तक यह खबर फैला दो। जिस तक भी यह खबर पहुंचे वह सब भी उक्त मनुष्य से प्रेम करे और इस तरह यह सिलसिला बढ़ता चला जाता है।
किन्तु कुछ लोग अपने अहंकार की तुष्टि के लिए अपनी वाणी का दुरूपयोग करते हैं, जिससे झगड़ो की शुरूआत हो जाती है। अगर आप आए दिन होने वाले झगड़ो का विश्लेषण करें तो पाता लगेगा कि छोटी-छोटी बातों पर बड़े-बड़े झगडे हो जाते हैं और उनकी असल जड़ कटु वाणी ही होती है।
इसलिए अगर आपको अपना सन्देश दूसरों तक पहुँचाना हैं तो कटु वाणी का त्याग करके मधुर वाणी को उपयोग करना चाहिए। जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि मधुरता से सुवचन बोले जाएं तो बात के महत्त्व का पता चलता है, वर्ना अर्थ का अनर्थ ही होता है।
परन्तु मधुर वाणी बोलने से तात्पर्य यह नही है कि मन में द्वेष रखते हुए मीठी वाणी का प्रयोग किया जाए। जीवन का लक्ष्य तो मन की कटुता / वैमनस्य को दूर करके अपनी इन्द्रियों पर काबू पाना होना चाहिए।
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करे, आपहुं सीतल होय॥
किसी ने सही कहा है कि अहम् को छोड़ कर मधुरता से सुवचन बोलें जाएँ तो जीवन का सच्चा सुख मिलता है। कभी अंहकार में तो कभी क्रोध और आवेश में कटु वाणी बोल कर हम अपनी वाणी को तो दूषित करते ही हैं, सामने वाले को कष्ट पहुंचाकर अपने लिए पाप भी बटोरते हैं, जो कि हमें शक्तिहीन ही बनाते हैं।
किसी भी क्षेत्र में सफलता पाने के लिए व्यक्ति के व्यक्तित्व की निर्णायक भूमिका होती है, व्यक्तित्व विकास के लिए भाषा का महत्त्व तो है ही, परन्तु इसके साथ-साथ वाणी की मधुरता भी उतनी ही आवश्यक है। यह वाणी ही हैं जिससे किसी भी मनुष्य के स्वाभाव का अंदाज़ा होता है। चेहरे से अक्सर जो लोग सौम्य अथवा आक्रामक दिखाई देते हैं, असल ज़िन्दगी में उनका स्वभाव कुछ और ही होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि बातचीत के लहज़े से ही व्यक्तित्व का सही अंदाजा लगाया जा सकता है।
ईश्वर ने हमें धरती पर प्रेम फ़ैलाने के लिए भेजा है और यही हर धर्म का सन्देश हैं। प्रेम की तो अजीब ही लीला है, प्रभु के अनुसार तो स्नेह बाँटने से प्रेम बढ़ता है और इससे स्वयं प्रभु खुश होते हैं। कुरआन के अनुसार जब प्रभु किसी से खुश होते हैं तो अपने फरिश्तों से कहते हैं कि मैं उक्त मनुष्य से प्रेम करता हूँ, तुम भी उससे प्रेम करों और पुरे ब्रह्माण्ड में हर जीव तक यह खबर फैला दो। जिस तक भी यह खबर पहुंचे वह सब भी उक्त मनुष्य से प्रेम करे और इस तरह यह सिलसिला बढ़ता चला जाता है।
किन्तु कुछ लोग अपने अहंकार की तुष्टि के लिए अपनी वाणी का दुरूपयोग करते हैं, जिससे झगड़ो की शुरूआत हो जाती है। अगर आप आए दिन होने वाले झगड़ो का विश्लेषण करें तो पाता लगेगा कि छोटी-छोटी बातों पर बड़े-बड़े झगडे हो जाते हैं और उनकी असल जड़ कटु वाणी ही होती है।
इसलिए अगर आपको अपना सन्देश दूसरों तक पहुँचाना हैं तो कटु वाणी का त्याग करके मधुर वाणी को उपयोग करना चाहिए। जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि मधुरता से सुवचन बोले जाएं तो बात के महत्त्व का पता चलता है, वर्ना अर्थ का अनर्थ ही होता है।
परन्तु मधुर वाणी बोलने से तात्पर्य यह नही है कि मन में द्वेष रखते हुए मीठी वाणी का प्रयोग किया जाए। जीवन का लक्ष्य तो मन की कटुता / वैमनस्य को दूर करके अपनी इन्द्रियों पर काबू पाना होना चाहिए।
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
Keywords: Madhur Vani, Language, bhasha, katu vaani, prem, love
It's really a nice post. But I've some doubt on your "Urdu" post. Hope I'll talk to u later.
ReplyDeleteWhat in Urdu post
DeleteAre you mad kanishk there is nothing wrong with Urdu post
DeleteAre you mad kanishk there is nothing wrong with Urdu post
Deletebahut khab likha aapne...poori tarah sehmat hoon...par insaan hi to hai jo apne pair par khud kulhaadi maarta hai
ReplyDeleteवैसे तो पूरा लेख ही अच्छा लिखा है आपने, परन्तु यह पैराग्राफ मुझे सबसे अच्छा लगा.
ReplyDelete"बड़ो से हमेशा सुनते आएं हैं कि वह वाणी ही हैं जिससे मनुष्य के स्वाभाव का अंदाज़ा होता है। ईश्वर ने हमें धरती पर प्रेम फ़ैलाने के लिए भेजा है, और यही हर धर्म का सन्देश हैं। प्रेम की तो अजीब ही लीला है, प्रभु के अनुसार तो स्नेह बाँटने से प्रेम बढ़ता है और इससे स्वयं प्रभु खुश होते हैं. और कुरआन के अनुसार जब प्रभु किसी से खुश होते हैं तो अपने फरिश्तों से कहते हैं कि मैं उक्त मनुष्य से प्रेम करता हूँ. तो तुम भी उससे प्रेम करों और पुरे ब्रह्माण्ड में यह खबर फैला दो. जिस तक भी यह खबर पहुंचे वह सब भी उक्त मनुष्य से प्रेम करे और इस तरह यह सिलसिला बढ़ता चला जाता है."
very nice post! main bhi aapki baat se sehmat hoon.
ReplyDeleteबहुत खूब वाकई आप रस पिलायेंगे वह भी प्रेम का, बहतरीन वाकई आपने दलीलें भी शानदार पेश की हैं, और प्रस्तुती से लग नहीं रहा आप नये ब्लागर हैं, बेहद खुशी हुई nice post
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट पर मेरी खुशनसीबी कि पहला वोट दे सका
वाणी ऐसी बोलिए, मन का आपा खोय।
ReplyDeleteऔरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होय॥
@ MLA (लियाकत भाई), रश्मि जी, विजय जी, उमर भाई एवं सलीम भाई. आपकी हौसला अफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया!
ReplyDeleteउमर भाई, प्रेम की लीला वाकई अजीब होती है. और यह मेरा हिंदी प्रेम ही है जो मुझे यहाँ तक खींच लाया.
ReplyDeleteमैं आपका बहुत-बहुत शुक्र गुजार हूँ कि आपने मेरे प्रति प्रेम दिखलाते हुए मुझे ब्लोग्वानी का पता बताया. जितनी बार भी अता करूँ कम है.
Tumhara lekh to achha hai, parantu achha tabhi hai jab yeh batein ise vastvik jivan main istemal karo. tumhare kuchh bhai bandhu to kuchh aur bhasha bolte hain......... mere vichar se aap samajh rahe honge ki main kya kehna chah raha hun...............
ReplyDeletekuchh log hamesha hi katu vani ka prayog karte hain shahnawaz sahib.... unke bare mein kya ray hai?
ReplyDeleteNice post. Logo ki chhodo, voh hindi film ka song hai na, "kuchh to log kahenge logo ka kaam he kehna".
ReplyDeleteAap bas likhte reho!
Sahi kaha apne...
Deleteधन्यवाद शहला जी!
ReplyDeleteआपने बिलकुल ठीक कहा है. परन्तु मेर मानना है कि अगर सुझाव अच्छे हों तो अवश्य ही उन पर ध्यान दिया जाना चाहिए. और फिर आलोचकों के होने से ही तो अपने अन्दर कि कमियों का भी पता चलता है.
@ Anonymous
ReplyDeleteमैं जो भी लिखता हूँ, पूरा प्रयत्न करता हूँ कि अपने जीवन में उस पर स्वयं भी अमल करूँ. आपके विचार अमूल्य हैं, अवश्य ही उन पर अमल करूँगा.
धन्यवाद!
जहाँ तक दुसरे भाइयों के कटु वाणी बोलने की बात है, तो मैं तो ऐसे किसी व्यक्ति को नहीं जानता हूँ.... फिर black sheep तो हर जगह मिल जाते हैं. मित्र ऐसे लोगो की बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए.
ReplyDeleteMubarak do Dost. Allah apko apni hifz o aman men rakhe.
ReplyDeleteDer ayad durust ayad .
ReplyDeletemalik ka karam ho aap sabhi par .
hamari taraf bhi to aao bhai.
वाणी में मिठास हो तो जग जीता जा सकता है ।
ReplyDeleteबेहतरीन आलेख ! साधुवाद स्वीकारिये।
बढ़िया पोस्ट
ReplyDeleteशाहनवाज भाई, बहुत उमदा लिखते हैं, परन्तु इस वाक्य " ईश्वर ने हमें धरती पर प्रेम फ़ैलाने के लिए भेजा है " से उत्तम यह है, ईश्वर ने हमें धरती पर अपनी इबादत के लिए भेजा है "
ReplyDeleteबाकी सब बातें अतिसुन्दर रूप में पेश किये हैं।
इसलिए अगर आपको अपना सन्देश दूसरों तक पहुँचाना हैं तो कटु वाणी का त्याग करके मधुर वाणी को उपयोग करना चाहिए। जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि मधुरता से सुवचन बोले जाएं तो बात के महत्त्व का पता चलता है, वर्ना अर्थ का अनर्थ ही होता है।
ReplyDeleteबहुत पते की सुन्दर, सच्ची और सार्थक बात बताई है आपने,शाह नवाज जी.
शानदार प्रस्तुति के लिए दिल से शुक्रिया जी.
कल 12/08/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
Good Essay..........and thanxxxxxx
ReplyDeletebahut khoob essay
ReplyDeleteShukriya.....
DeleteSo good
ReplyDeleteThanks Chiranjeev ji....
Deleteबहुत खूब लिखा हैं सर, सुन्दर और अच्छी वाणी से 50% काम तो यूँ ही पुरे हो जाते हिं
ReplyDeleteहौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद!
Deletevery beautifully written. thank you so much for such an amazing post...
ReplyDeletebahut khoob likha h ji aapne
ReplyDeleteशुक्रिया रिया जी...
Deleteसबसे अच्छा निचोड़ है ये पहरा
ReplyDeleteमधुर वाणी बोलने से तात्पर्य यह नही है कि मन में द्वेष रखते हुए मीठी वाणी का प्रयोग किया जाए। जीवन का लक्ष्य तो मन की कटुता / वैमनस्य को दूर करके अपनी इन्द्रियों पर काबू पाना होना चाहिए।
शुक्रिया...
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