उर्दू उन लोगों के लिए बनाई गयी थी जो या तो फारसी या फिर हिंदी नहीं समझते हो. हिंदी के शब्दों को फारसी का touch दे कर यानि दोनों भाषाओ को मिलाने के बाद जो नया रूप सामने आया उसको उर्दू कहते हैं। उर्दू को हिंदी की आत्मा और फारसी की साज सज्जा पहना कर बनाया गया था। ताकि एक दुसरे की भाषा को न समझने वाले एक दुसरे से बातचीत कर सकें। लेकिन बनने के बाद यह इतनी खुबसूरत और मीठी बन गयी कि आम बोलचाल की भाषा बनती गयी। इसलिए यह कहा जा सकता है कि उर्दू किसी भी तरह से हिंदी से अलग नहीं है।
मैं हिंदी को प्यार करता हूँ क्योंकि यह मेरी राष्ट्र भाषा है, वही उर्दू को पसंद करता हूँ क्योंकि यह मेरी मातृभाषा है। उर्दू मुझे इसलिय पसंद है क्योंकि यह एक ऐसी हिंदी है जिसका लहजा फारसी मिलने की वजह से (जो मिश्रण बना वह) बहुत ही खुबसूरत एवम कर्णप्रिय हो गया है।
किसी ने बहुत खूब कहा है कि उर्दू और हिंदी दो बहनों की तरह हैं।
लोग अक्सर इस दुविधा में रहते हैं की फारसी के कुछ शब्द संस्कृत से लिए गए हैं अथवा संस्कृत के कुछ शब्द फारसी से लिए गएं हैं। परन्तु अगर इतिहास का अध्यन किया जाए तो पता चलता है कि हिंदी और फारसी में बहुत सारे शब्द दोनों भाषाओ को मिलकर बने हैं।
6000 वर्ष पहले फारसी और हिंदी एक साझी विरासत की तरह प्रयोग होती थी। ताम्र पाषाण युग या कांस्य युग के समय में या इससे भी पहले नवपाषाण युग या पेलिओलिथिक युग में उस भाषा को लोग PIA कहते हैं यानि प्रोटो-इंडो-यूरोपिंस (Proto-Indo-Europeans) भाषा।
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
मैं हिंदी को प्यार करता हूँ क्योंकि यह मेरी राष्ट्र भाषा है, वही उर्दू को पसंद करता हूँ क्योंकि यह मेरी मातृभाषा है। उर्दू मुझे इसलिय पसंद है क्योंकि यह एक ऐसी हिंदी है जिसका लहजा फारसी मिलने की वजह से (जो मिश्रण बना वह) बहुत ही खुबसूरत एवम कर्णप्रिय हो गया है।
किसी ने बहुत खूब कहा है कि उर्दू और हिंदी दो बहनों की तरह हैं।
लोग अक्सर इस दुविधा में रहते हैं की फारसी के कुछ शब्द संस्कृत से लिए गए हैं अथवा संस्कृत के कुछ शब्द फारसी से लिए गएं हैं। परन्तु अगर इतिहास का अध्यन किया जाए तो पता चलता है कि हिंदी और फारसी में बहुत सारे शब्द दोनों भाषाओ को मिलकर बने हैं।
6000 वर्ष पहले फारसी और हिंदी एक साझी विरासत की तरह प्रयोग होती थी। ताम्र पाषाण युग या कांस्य युग के समय में या इससे भी पहले नवपाषाण युग या पेलिओलिथिक युग में उस भाषा को लोग PIA कहते हैं यानि प्रोटो-इंडो-यूरोपिंस (Proto-Indo-Europeans) भाषा।
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
Keywords:
Hindi, PIA, Proto-Indo-Europeans, Urdu, शाहनवाज़ सिद्दीकी
बिल्कुल सही कहा आपने ,उर्दू और हिंदी बहनें ही हैं ,दोनों अपनी अपनी जगह बहुत महत्वपूर्ण और ख़ूबसूरत हैं
ReplyDeleteशुक्रिया इस्मत जी!
ReplyDeleteउर्दू और हिंदी दो बदन तो हो सकती हैं लेकिन रूह एक ही हैं!
ReplyDeleteUrdu wakai bahut hi karnpriye Bhasha hai. Iski Mithas dil mein madhur sangeet sa ghol deti hai. Aur dil chahta hai urdu bolne wale ko sunti rahoon... iski isi khasiyat ki vajah se main Urdu sahity ki Diwani bani hoon.
ReplyDeleteलेकिन बनने के बाद यह इतनी खुबसूरत और मीठी बन गयी की आम बोलचाल की भाषा बन गयी.
ReplyDeleteसचमुच शाह भाई, उर्दू हमारे देश की गंगा-जमुनी संस्कृति का प्रतीक है. आपने बिलकुल सही लिखा है.
ReplyDeleteबधाई!
ReplyDeleteShah Nawaz ji Urdu mein bahut sare Hindi ke shabd prayog hote hain aur log unhe Urdu ke shabd samajhte hain. Yeh achhi baat nahi hai.
ReplyDeleteरश्मि जी, लियाकत भाई एवं संजीव भाई आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ कि आपने अपना कीमती वक्त मेरे ब्लॉग के लिए निकला.
ReplyDeleteसंजीव जी आपने सही कहा, उर्दू में बहुत सारे ऐसे शब्द हैं जो हिंदी से आये हैं, परन्तु उनमें फारसी का लहजा मिला कर बना शब्द ही उर्दू का शब्द कहलाता है. इसलिए शब्द के नए रूप को हिंदी का शब्द न कहकर उर्दू का शब्द कहा जाता है. लेकिन असल में तो वह हिंदी एवं फारसी का मिश्रण ही है.
ReplyDeleteदो बदन एक रूह इससे बडी बात और कोई नहीं हो सकती ..काश कि हमें भी उर्दू आती तो हम भी कयामत ढाते शेरो शायरी में ..
ReplyDeleteअजय कुमार झा
सही है उर्दू और हिन्दी दो अलग अलग भाषाएँ नहीं हैं।
ReplyDeleteशुक्रिया अजय कुमार झा जी एवं दिनेशराय द्विवेदी साहब! मेरी हौसला अफजाई के लिए.
ReplyDeleteMLA said...
ReplyDeleteसचमुच शाह भाई, उर्दू हमारे देश की गंगा-जमुनी संस्कृति का प्रतीक है. आपने बिलकुल सही लिखा है
बिलकुल सही लिखा है आपने MLA साहब (लियाकत भाई)
जिस प्रकार हमारी दैनिक भाषा में उर्दू के शब्द आ गए हैं ये उचित है?
ReplyDeleteबड़ी विडम्बना है की इतनी बड़ी हिंदी राज्य होने के बाद भी हम अंग्रेजी और उर्दू से मात खा रहे हैं.
कितना भी प्रयास करता हूँ उर्दू घुस ही जाती है वार्ता में. साथ ही साथ "किताब" के स्थान पर "पुस्तक" बोलना भी दैनिक क्रिया मैं अजीब लगता है
There are many hindi words or u can say sanskrit originated, which are always claimed as Urdu words but no body says as hindi words. Like Jigar, chaand, nazar etc
ReplyDeleteहो सकता है यह शब्द फारसी से आये हों. लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है.
ReplyDeleteउर्दू उन लोगों के लिए बनाई गयी थी जो या तो फारसी या फिर हिंदी नहीं समझते हो. हिंदी के शब्दों को फारसी का touch दे कर यानि दोनों भाषाओ को मिलाने के बाद जो नया रूप सामने आया उसको उर्दू कहते हैं
Shah Nawaz bhai there is lots of words, who r originaly from Sanskrit or Hindi but people seems that they are Urdu workds like Bebasi.
ReplyDeleteBebasi is 100% not urdu/persian...but it's 100% moderm hindi word. here is the explaination...
Bebasi => Be-(prefix) + Basi
The prefix Be- has originated from Sanskrit prefix Vi- which means "Devoid of" OR "Not having something....as used in Vi-dhawa(Be-wa), Vi-desh,
-Basi or Bas has originated from Sanskrit "Vash" which mean "control" or "influence"...
Sanskrit "Vi-vash" => "Be-bas" and it's noun is "Be-basi"
श्रीमान आपकी यह calculation और इसका result ही तो उर्दू है. उर्दू इसके आलावा और कुछ भी नहीं है. इसलिए उर्दू को हिंदी से अलग करके देखना सिर्फ भूल ही नहीं बल्कि बेवकूफी भी है.
ReplyDeleteBut why are you putting a label of urdu on those words. This is the matter of conflict. It's snaskrit originated so offcourse it will be called modern hindi words......and load words in urdu.
ReplyDeleteयार हिंदी और फारसी में बहुत सारे शब्द दोनों भाषाओ को मिलकर बने हैं. आपकी तरफ से यह बहस बेमानी है. 5000 वर्ष या इससे भी पहले फारसी और हिंदी एक साझी विरासत की तरह प्रयोग होती थी. उस भाषा को लोग PIA कहते हैं यानि Proto-Indo-Europeans.
ReplyDelete"The Proto-Indo-Europeans (PIE) were the speakers of the Proto-Indo-European language, and likely lived around 4000 BC, during the Copper Age and the Bronze Age, or possibly earlier, during the Neolithic or Paleolithic eras. Knowledge of them comes chiefly from the reconstruction of their language, which was the ancestor of the Indo-European languages, including English. Their genetics and phenotypes are a subject of speculation."
The Proto-Indo-Europeans are defined as the people who spoke the reconstructed Proto-Indo-European language. Thus the basic information about these pre-historic people arises out of the comparative linguistics of the Indo-European languages as well as the historic record of the spread of the Indo-European languages and the histories of the peoples speaking those languages. This may be augmented by comparing what may be deduced from these languages and histories with studies in archaeology and genetics. That is to say given the information present in the Indo-European languages and the reconstructed Proto-Indo-European language, one may attempt to link this information with results arrived at in archaeology and genetics to construct a more complete picture of the Proto-Indo-Europeans themselves.
उर्दू मुझे इसलिय पसंद है क्योंकि यह एक ऐसी हिंदी है जिसका लहजा फारसी मिलने की वजह से बहुत ही खुबसूरत एवम कर्णप्रिय हो गया है.
ReplyDeleteWaah!! bahut sundar baat kahi aapane shatpratishat sahamat.....dhanywaad.
हिंदी और उर्दू कैसे घुले मिले है......यह तो पता ही नहीं चलता है....
ReplyDelete..................
अब इन पहेलियों को ही लीजिए..क्या इनमे उर्दू नहीं है ?
......
विलुप्त होती... .....नानी-दादी की पहेलियाँ.........परिणाम..... ( लड्डू बोलता है....इंजीनियर के दिल से....)
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_24.html
जो दिल को अच्छा लगे ऐसी बोली बोल
ReplyDeleteहिन्दी ने अंग्रेजी और उर्दू दोनों के शब्दो को अपने में समाहित कर लिया है
bahut achha kaha apne...
ReplyDeletemujhe bhi urdu ke lafzo ka pryog achha lagta hai...khubsurat....
अलग अलग नहीं तो लिपियाँ क्यों अलग हैं ?
ReplyDeleteउर्दू बहुत मीठी जुबां है...पर ये भी प्रश्न सार्थक है कि फिर लिपि अलग अलग क्यों?
ReplyDeleteवैसे हिंदी और उर्दू आपस में इतनी घुल मिल गयीं हैं कि अलग करना मुश्किल है
'urdu' un tamam jagahon kee bhasha shaili apnayi,jahan se lashkar aage kooch karta rah..
ReplyDelete"Urdu" bhabdka arth hai lashkar!
nice post
ReplyDeleteआप सभी का तहे-दिल से शुक्रिया अता करता हूँ कि आपने मेरे ब्लॉग पर आकर मेरी हौसला अफजाई की. धन्यवाद!
ReplyDeleteजहाँ तक बात लिपि की है, तो इसमें एक बात यह भी है कि फारसी के कुछ लफ्ज़ देवनागरी लिपि में अपनी ख़ूबसूरती को संभाल नहीं पाते हैं, लेकिन अब तो यह मस'अला भी अब हल हो गया है.... अब तो अधिकतर लोग उर्दू को देवनागरी लिपि में ही लिख रहे हैं.
ReplyDeleteAapne bilkul sahi kaha Shah ji ki ab adhiktar log Urdu ko Devnagri lipi arthat Hindi ki tarah likhte hain aur aaj Urdu ke itna prachalit hone ki ek vajah yeh bhi hai.
ReplyDeleteबहुत ख़ूब दो बहनो के बारे मैं आपने अपने विचार बहुत ही अनोखे ढंग से प्रेषित किए...जय हो....
ReplyDeleteबढिया, मैं भी इनको दो बहनें मानता हूँ दोनों की अच्छी बुरी बातों से वाकिफ दोनों पसन्द दोनों के बारे में जो बुरा लिखे यह मुझे मन्जूर नहीं
ReplyDeleteसफर में था आज देख पाया इस लेख को बहुत अच्छा लिखा, इस कमेंटस को तो हाजिरी मानें आगे आता रहूंगा
आपको ब्लागवाणी परिवार में आना भी मुबारक हो
अल्लाह करे जल्द आप 'हमारी अन्जुमन' में भी नजर आयें
शुक्रिया हिमांशु जी एवं उमर भाई. आपका बहुत-बहुत शुक्रिया कि आपने अपनी व्यस्तता के बीच में मेरे ब्लॉग पर आने का समय निकला.
ReplyDelete--सारी भाषायें ही बहनें हैं आपस में---सभी एक मानव से विकसित हुईं जब उसने बोलना सीखा, ---५०००--६००० वर्ष पहले न हिन्दी थे न उर्दू न फारसी---संस्क्रत थी---प्रोटो-इन्डो-यूरोपिअन भाषा(वेदिक-अवेस्तन आदि) --उसी से विश्व की समस्त भाषाएं निकलीं हैं, भौगोलिक स्थिति के अनुसार वे बोली जाने लगी---जब लिपि का आविष्कार हुआ वह भी , मौसम, भूगोल व उच्चारण के अनुसार स्थानीय बनी--ध्यान से देखें सारी बोली व लिपियां आपस में मिलतीं जुलतीं हैं--चित्र लिपि, ऊपर नीचे वाली व दायें-बायें वाली भी ।
ReplyDelete---वेदिक-शास्त्रीय व बोलचाल की संस्क्रत-भाषा भारत में समुन्नत हुई एवम उसकी सरलतम परिणति हिन्दी है।लिपि भी वही है।---वेदिक-अवेस्तन भाषा से एक भूभाग में फारसी-->तम्बू की भाषा,फारसी+ यूरोपियन+ लोकल देशीय भाषायें= उर्दू---> हिन्दुस्तान में हिन्दवी उर्दू, अत: लिपि फारसी ही है।---- वास्तव में तो दोनों भाषायें अलग-अलग ही हैं ।
भाषाए सुविधा और बोली के कारण व्याप्त होती गयी है. उर्दू हिंदी का उदगम क्षेत्र एक ही है.
ReplyDeleteएक शेर अर्ज है...
मैं सुलभ हूँ मेरी पहचान बस इतनी है
मेरी लेखनी उर्दू और जबान हिंदी है
शेर पढता हूँ उर्दू में ये हिंदी लगती है
मौसी को देखता हूँ माँ जैसी लगती है
प्रसिद्द शायर मुनव्वर राणा ने उर्दू-हिंदी में माँ-मौसी को देखा है.
अच्छे पोस्ट के लिए शुक्रिया!
हम तो समझते थे की भाषा का इस्तेमाल होता है प्रेम के इज़हार के लिए..,
ReplyDeleteआज मगर जाना की ज़बान काम आ गयी शमशीर की तरह..!!
ये तो घर है प्रेम का खाला का घर नाही,
सिस उतार भुएँ धर तब बैठ घर माहि..
कबीरा भाटी कलाल की बहुतक बैठे आये,
सिस सौंपे सो ही पींवे नहीं तो पिया ना जाए...
प्रेम ना खेत उपजे ना ही हाट बिकाए,
राजा प्रजा जो रुचे सिस देई ले जाए...
शाहनावाज़ सहाब,
ReplyDeleteबहुत बहुत मुबारक हो...पहले लेख को इतनी अच्छी प्रतिक्रिया और एक लेख के बाद चार फ़ालोवर मिलना बहुत बडी बात है....बहुत बहुत मुबारक हो....
माशाल्लाह काफ़ी अच्छा लिखते है....ऐसे ही लिखते रहे हमारी दुआयें आपके साथ हैं....
@ Dr. shyam gupta ji, सुलभ § सतरंगी जी, manish badkas ji एवं काशिफ़ आरिफ़ जी.
ReplyDeleteआप सभी का भी बहुत-बहुत शुक्रिया, मेरी हौसला अफजाई के लिए. आपने मेरे ब्लॉग पर आने के लिए समय निकला और कुछ शब्द लिखे.
धन्यवाद!
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
शाह नवाज जी व सभी जिन्होने हिन्दी उर्दू पर अपनी राय व्यक्त की है
ReplyDeleteमैं यह मानता हूं कि कोई भी भारतवासी शायद ही इतनी शुद्ध हिन्दी बोलता होगा जिसमे वह उर्दू का कोई भी शब्द प्रयोग में न लाता हो और शायद ही कोई इतनी खालिस उर्दू बोलता होगा कि वह हिन्दी के शब्दों को न बोलता हो, जब यह आपस में इतनी घुल-मिल चुकी हैं तो इस बारे में बहस की न तो कोई जरूरत है और न ही गुंजाइश |
धन्यवाद अजय जी एवं वीरेंदर राय जी.
ReplyDeleteअजय जी मैं अवश्य ही कला एवं ज्ञान से ओत-प्रोत अन्य ब्लोग्स को पढने की कोशिश करूँगा.
वीरेंदर जी, आपके विचार बिलकुल सही हैं, यह दोनों ही भाषाएँ हिंदुस्तान के रग-रग में रहती हैं.
इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeletesabhi bhasha vicharon ka adan padan karne ka sadan hai., hindi urdu to sike do pahlu hain. beta likhte raho. congaratulations. s.k.arya
ReplyDeleteजज जैसे आला मंसब पर रहे आनंद नारायण मुल्ला की दो बात ज़ेहन नशीं है आज तक.पुलिस को वर्दी वाला गुंडा उन्होंने ही कहा था.दूसरी बात उन्होंने शे;र में दर्ज कर दी:वही कहने का मन है.
ReplyDeleteउर्दू और हिंदी में फ़र्क़ सिर्फ है इतना
हम देखते हैं ख्वाब वो देखते हैं सपना